मोर स्कूल मोर इतिहास अभियान: उद्देश्य, प्रक्रिया व लेख का नमूना देखें

छत्तीसगढ़ के समस्त विकासखंडों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के अंतर्गत एक अनोखी और सराहनीय पहल शुरू की गई है—"मोर स्कूल मोर इतिहास"। इस पहल का उद्देश्य विद्यार्थियों को अपने गाँव, स्कूल और स्थानीय परंपराओं से जोड़ते हुए, उन्हें अपनी जड़ों को जानने और समझने का अवसर देना है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत "मोर स्कूल मोर इतिहास" अभियान में विद्यार्थी अपने स्कूल, गांव, परंपराएं, त्योहार और बुजुर्गों के अनुभवों को लेखन

यह गतिविधि न केवल बच्चों में स्वदेश प्रेम, सांस्कृतिक चेतना और लेखन कौशल को बढ़ावा देती है, बल्कि स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों में सक्रिय भागीदारी की भावना को भी सशक्त करती है।

🗓️ कार्य की अंतिम तिथि

सभी शासकीय और मान्यता प्राप्त प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी स्कूल के शिक्षकों को यह निर्देशित किया गया है कि वे अपने-अपने विद्यालयों के बच्चों से निम्न बिंदुओं पर आधारित सामग्री 7 अगस्त 2025 तक संकलित करें और उसे PDF फॉर्मेट में तैयार कर संकुल समन्वयकों के माध्यम से ब्लॉक नोडल को भेजें।

इन्हे भी पढ़ें
WhatsApp WhatsApp Group
Join Now
Telegram Telegram Group
Join Now

✍️ क्या लिखवाना है विद्यार्थियों से?

बच्चों से निम्न विषयों पर 2 से 3 पेज की जानकारी लिखवाई जाए:

🏫 1. स्कूल का इतिहास

  • स्कूल की स्थापना कब हुई?
  • पहले शिक्षक कौन थे?
  • स्कूल के पुराने भवन और वर्तमान सुविधाएं
  • विद्यालय की कोई विशेष पहचान या उपलब्धि

🏘️ 2. गाँव का इतिहास

  • गाँव की स्थापना से जुड़ी मान्यताएँ या कहानियाँ
  • पुरखों द्वारा गाँव बसाने की कहानी
  • गाँव के प्रमुख सामाजिक और ऐतिहासिक स्थान

🪔 3. स्थानीय परंपराएं और त्यौहार

  • गाँव में मनाए जाने वाले प्रमुख त्यौहार
  • अनोखी लोक परंपराएं, खेल, गीत, नृत्य
  • कोई विशेष रीति-रिवाज या मान्यता

👴 4. गाँव के बुजुर्गों से बातचीत

  • गाँव के 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों से चर्चा करें
  • उनके जीवन के अनुभव
  • स्कूल और गाँव के पुराने समय की झलक

💡 नोट:

  • यह लेखन कार्य बच्चों द्वारा स्वयं किया गया होना चाहिए।
  • शिक्षक मार्गदर्शन करें लेकिन लेखन में रचनात्मकता और मौलिकता बनी रहे।

📤 प्रस्तुतिकरण और सबमिशन

  • तैयार लेख को 2–3 पेज की PDF फाइल के रूप में संग्रहित करें।
  • 7 अगस्त 2025 तक अपने संकुल समन्वयक को भेजें।
  • संकुल समन्वयक इसे ब्लॉक स्तर पर ब्लॉक नोडल अधिकारी को प्रस्तुत करें।

स्वतंत्रता दिवस 2025 पर विशेष प्रस्तुति

इस अभियान को स्वतंत्रता दिवस से भी जोड़ा गया है। प्रत्येक विद्यालय को अपने विद्यालय या गाँव के इतिहास से संबंधित बच्चों द्वारा लिखे गए अंशों को 15 अगस्त 2025 को विद्यालय स्तर पर प्रस्तुत करना होगा।
यह प्रस्तुति:

  • भाषण
  • पोस्टर
  • नाट्य रूपांतरण
  • समूह गान या कविता के रूप में हो सकती है।

इससे विद्यार्थियों में राष्ट्रभक्ति की भावना के साथ-साथ स्थानीय इतिहास और संस्कृति के प्रति सम्मान भी उत्पन्न होगा।

🎯 "मोर स्कूल मोर इतिहास" गतिविधि के उद्देश्य

✅ बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ना
✅ रचनात्मक और मौलिक लेखन को बढ़ावा देना
✅ लोक संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण
✅ बुजुर्गों से संवाद के माध्यम से सामाजिक संबंध मजबूत करना
✅ स्वतंत्रता दिवस को स्थानीय ऐतिहासिक संदर्भ से जोड़ना

WhatsApp WhatsApp Group
Join Now
Telegram Telegram Group
Join Now

📌 शिक्षकों के लिए सुझाव

  • विद्यालय में लेखन कार्य हेतु समय निर्धारित करें।
  • बच्चों को प्रोत्साहित करें कि वे घर जाकर अपने माता-पिता और दादा-दादी से बातचीत करें।
  • बच्चों को अपने गाँव के इतिहास से संबंधित पुरानी तस्वीरें, कहावतें, परंपराएं खोजने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • यदि संभव हो तो लेखन कार्य के साथ चित्र भी सम्मिलित करवाएं।
  • बच्चों के कार्य को स्कैन कर PDF फाइल बनाएं।

✍️ नमूना 01 

विद्यालय : शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला, कुदरगढ़
विकासखंड : ओड़गी
जिला : सूरजपुर, छत्तीसगढ़
छात्र/छात्रा का नाम : ____________
कक्षा : 8वीं

🏫 हमारे विद्यालय का इतिहास

हमारा विद्यालय शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला, कुदरगढ़ की स्थापना 1992 में हुई थी। शुरुआत में यह विद्यालय केवल कक्षा 1 से 5 तक चलता था। ग्रामीणों की मांग और बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए बाद में इसे पूर्व माध्यमिक स्तर तक विस्तारित किया गया।

विद्यालय की पहली कक्षा पेड़ के नीचे लगी थी। वहां पर न बेंच थी, न बोर्ड। लेकिन बच्चों में पढ़ने का बहुत उत्साह था। पहले शिक्षक श्री देवनारायण साहू सर थे, जो आसपास के गांवों में पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए बहुत मेहनत करते थे।

आज हमारे स्कूल में कुल 6 कक्षाएं, पुस्तकालय, खेल सामग्री और मिड-डे मील शेड की सुविधा है। विद्यालय ने शैक्षणिक और सांस्कृतिक दोनों क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया है।

🏘️ कुदरगढ़ गांव का इतिहास

कुदरगढ़ गांव ओड़गी ब्लॉक का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। यह गांव माता कुदरगढ़ी देवी मंदिर के कारण पूरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। यह मंदिर एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है, जहां तक पहुँचने के लिए 800 से अधिक सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।

लोककथाओं के अनुसार, मां कुदरगढ़ी सतयुग में प्रकट हुई थीं और उन्होंने गाँव की रक्षा की थी। कुदरगढ़ का नाम भी देवी के नाम से ही पड़ा। यहां हर साल चैत्र नवरात्र में मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं।

यह गांव प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है और आसपास घने जंगल हैं, जहां हिरण, बंदर, भालू जैसे वन्यजीव भी देखे जाते हैं।

🪔 गांव की परंपराएं और त्यौहार

कुदरगढ़ गांव की प्रमुख परंपराओं में चैती मेला, सरहुल, नवाखाई, माटा पूजा आदि प्रमुख हैं।

चैत्र नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है, जहां माता के भक्त नारियल चढ़ाते हैं और दर्शन के बाद गाँव में रुकते हैं। इस समय पूरा गांव उत्सव में डूबा रहता है।

सरहुल पर्व में गांव के लोग पेड़ों की पूजा करते हैं, और नई फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं। करमा त्यौहार में युवाओं द्वारा मांदर बजाकर पारंपरिक नृत्य किया जाता है।

👴 बुजुर्गों से बातचीत और अनुभव

मैंने अपने गांव के बुजुर्ग बिरजू दादा से बातचीत की। उनकी उम्र लगभग 85 वर्ष है। उन्होंने बताया कि जब वे छोटे थे, तब गांव में न बिजली थी, न पक्की सड़क।

उन्होंने बताया कि कुदरगढ़ मेला तब बहुत छोटा होता था, लेकिन लोगों की आस्था बहुत गहरी थी। उनके अनुसार, पहले लोग पैदल ही जंगल पार करके माता के दर्शन के लिए आते थे।

बिरजू दादा ने कहा कि पहले के समय में गांव के लोग एक-दूसरे की मदद करते थे, खेतों में मिलजुलकर काम करते थे और रात को चौपाल में लोककथाएं सुनते थे।

📚 निष्कर्ष

"मोर स्कूल मोर इतिहास" लेखन कार्य के माध्यम से मुझे अपने विद्यालय, गांव और संस्कृति को जानने का सुनहरा अवसर मिला। मैंने यह जाना कि हमारा गांव सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और संघर्ष का प्रतीक है।

मुझे गर्व है कि मैं कुदरगढ़ जैसे ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल का निवासी हूँ। मैं चाहता हूँ कि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस परंपरा और संस्कृति से जुड़ी रहें।

📎 (यदि संभव हो तो छात्र यहाँ चित्र भी जोड़ सकते हैं)

  • कुदरगढ़ मंदिर की तस्वीर
  • विद्यालय की पुरानी या वर्तमान फोटो
  • बुजुर्गों के साथ बातचीत करते हुए चित्र
  • चैत्र नवरात्र मेला या अन्य त्यौहारों की फोटो

✍️ नमूना 02

विद्यालय : शासकीय माध्यमिक शाला, रामगढ़
विकासखंड : ______ (यहाँ विकासखंड का नाम भरें)
जिला : सरगुजा, छत्तीसगढ़
छात्र/छात्रा का नाम : ____________
कक्षा : 8वीं

🏫 हमारे विद्यालय का इतिहास

हमारा विद्यालय शासकीय माध्यमिक शाला, रामगढ़ की स्थापना वर्ष 1978 में हुई थी। प्रारंभ में यह एक प्राथमिक विद्यालय था, लेकिन समय के साथ विद्यालय की प्रगति होती गई और 1998 में इसे माध्यमिक स्तर तक बढ़ा दिया गया।

शुरुआत में विद्यालय में केवल दो कमरे और एक शिक्षक थे। पहले शिक्षक श्री रामनारायण गुरुजी थे, जो पास के गांव से साइकिल से आकर बच्चों को पढ़ाते थे। आज हमारे विद्यालय में 8 कमरे, एक पुस्तकालय, कंप्यूटर रूम और एक खेल मैदान है। वर्तमान में विद्यालय में 6 शिक्षक पदस्थ हैं और छात्र-छात्राओं की संख्या भी अच्छी है।

हमारे विद्यालय ने पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी कई उपलब्धियां हासिल की हैं।

🏘️ रामगढ़ गांव का इतिहास

रामगढ़ गांव सरगुजा जिले के उत्तर भाग में स्थित है। यह गांव ऐतिहासिक दृष्टि से काफी समृद्ध है। गांव के बुजुर्गों के अनुसार, पुराने समय में यहां एक किला हुआ करता था जिसे रामगढ़ किला कहा जाता था। माना जाता है कि इस गांव का नाम भी रामगढ़ इसी कारण पड़ा।

यहां अधिकतर आदिवासी समुदाय के लोग निवास करते हैं। चारों ओर घना जंगल, पहाड़ और प्राकृतिक सौंदर्य इस गांव की विशेषता है। गांव में एक प्राचीन शिव मंदिर और एक विशाल पीपल का पेड़ है, जिससे कई लोककथाएं जुड़ी हुई हैं।

🪔 गांव की परंपराएं और त्यौहार

रामगढ़ गांव में कई पारंपरिक त्यौहार आज भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं। इनमें प्रमुख हैं –

  • सरहुल, करमा, नवाखाई, और माटा पूजा।
  • सरहुल में वृक्षों की पूजा की जाती है, जबकि करमा में युवा मंडल ढोल-मांदर बजाते हुए नृत्य करते हैं। महिलाएं पारंपरिक साड़ी पहनकर समूह में गीत गाती हैं।

त्यौहार के समय गांव में मेले जैसा माहौल होता है और सभी लोग एक साथ भोज करते हैं। ये परंपराएं हमारे गांव की सांस्कृतिक पहचान हैं।

👴 बुजुर्गों से बातचीत और अनुभव

मैंने अपने गांव के एक बुजुर्ग ललई दादा, जिनकी उम्र 82 वर्ष है, से बातचीत की। उन्होंने बताया कि उनके समय में गांव में स्कूल नहीं था। बच्चे खेतों में काम करते थे और शिक्षा का महत्व नहीं समझते थे।

जब पहली बार स्कूल खुला, तो पूरे गांव में उत्सव जैसा माहौल था। दादा जी ने बताया कि पुराने समय में कैसे लोग मिल-जुलकर खेती करते थे, एक-दूसरे की मदद करते थे और त्यौहार मनाते थे।

उनकी बातें सुनकर मुझे एहसास हुआ कि हमारे गांव की जड़ें बहुत मजबूत हैं और हमारे बुजुर्गों के अनुभव से हमें बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।

📚 निष्कर्ष

"मोर स्कूल मोर इतिहास" अभियान के अंतर्गत यह लेखन कार्य करते समय मुझे अपने गांव और विद्यालय के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला।

मैंने जाना कि कैसे हमारे स्कूल की शुरुआत हुई, गांव में क्या-क्या परंपराएं हैं और हमारे बुजुर्गों का जीवन कैसा रहा।

इस अनुभव ने मुझे अपनी संस्कृति, इतिहास और पहचान से जोड़ दिया। मुझे गर्व है कि मैं इस विद्यालय और गांव का हिस्सा हूँ।

📎 (यदि संभव हो तो छात्र यहाँ चित्र भी जोड़ सकते हैं)

  • विद्यालय की पुरानी या वर्तमान फोटो
  • बुजुर्गों के साथ बातचीत करते हुए चित्र
  • गांव के त्यौहार या परंपराओं की फोटो

✍️ नमूना 03

विद्यालय : शासकीय उच्च प्राथमिक शाला, भैंसामुड़ा
विकासखंड : प्रेमनगर
जिला : सूरजपुर, छत्तीसगढ़
छात्र/छात्रा का नाम : ____________
कक्षा : 7वीं

🏫 हमारे विद्यालय का इतिहास

हमारा विद्यालय शासकीय उच्च प्राथमिक शाला, भैंसामुड़ा की स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी। प्रारंभ में यहाँ केवल कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई होती थी। वर्ष 2008 में इसे उच्च प्राथमिक स्तर तक (कक्षा 8वीं तक) बढ़ा दिया गया।

शुरू में स्कूल के पास सिर्फ एक मिट्टी का कमरा और एक ब्लैकबोर्ड था। शिक्षक स्वयं अपनी साइकिल से आते थे और बच्चों को बिठाने के लिए घरों से पटिया मंगाई जाती थी। पहले शिक्षक श्री रामकुमार पैकरा सर थे, जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से बच्चों को पढ़ाया।

आज हमारे विद्यालय में पक्के भवन, खेल का मैदान, पानी की टंकी, शौचालय और मिड-डे मील की पूरी व्यवस्था है। यहां कुल 5 शिक्षक हैं, और विद्यालय का वातावरण बहुत अनुशासित एवं प्रेरणादायक है।

🏘️ भैंसामुड़ा गांव का इतिहास

भैंसामुड़ा गांव का नाम "भैंसा" (एक पशु) और "मुड़ा" (छोटा टिला/ऊंचाई) से मिलकर बना है। यह गांव प्रेमनगर ब्लॉक के एक सुंदर, पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है। गांव की सीमा पर एक पुरानी बावड़ी और एक पत्थर से बना मंदिर आज भी मौजूद है, जिसे लोग "गड़ई बाबा का स्थान" कहते हैं।

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि यह क्षेत्र कभी वन्य जीवों का बसेरा था। गांव के लोग मुख्यतः खेती, पशुपालन और वनोपज पर निर्भर रहते आए हैं। यहाँ की मिट्टी उपजाऊ है और धान, कोदो, अरहर की खेती अधिक होती है।

🪔 गांव की परंपराएं और त्यौहार

भैंसामुड़ा गांव की सबसे प्रसिद्ध परंपरा है – 'गड़ई मेला', जो हर साल माघ महीने में लगता है। इसमें आस-पास के गांवों से लोग एकत्र होते हैं, और ग्रामीण खेल, नृत्य और लोक गीतों का आयोजन होता है।

इसके अलावा दीवाली, होली, हरियाली, करमा और सरहुल बड़े हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।

  • हरियाली तीज में महिलाएं झूला झूलती हैं और लोकगीत गाती हैं।
  • सरहुल में साखू वृक्ष की पूजा की जाती है और नवा अन्न का भोग चढ़ाया जाता है।
  • करमा नृत्य में युवाओं द्वारा मांदर बजाकर रात्रि में सामूहिक नृत्य किया जाता है।

👴 बुजुर्गों से बातचीत और अनुभव

मैंने गांव के बुजुर्ग हरिप्रसाद भगत दादा (उम्र लगभग 78 वर्ष) से बात की। उन्होंने बताया कि जब वे बच्चे थे, तब स्कूल बहुत दूर था। बच्चे नंगे पांव जंगल पार कर पढ़ने जाते थे।

हरिप्रसाद दादा ने बताया कि पहले लोग आपस में बहुत सहयोग करते थे। दीवाली के समय पूरा गांव मिलकर घरों की सफाई करता, और मिट्टी के दीपक खुद बनाता था।

उन्होंने कहा, “आज भले ही सुविधा बढ़ गई है, लेकिन अपनापन और सादगी पहले जैसे नहीं रहे।” उनकी बातें सुनकर मुझे गांव की पुरानी जीवनशैली के बारे में समझ आया।

📚 निष्कर्ष

"मोर स्कूल मोर इतिहास" अभियान ने मुझे अपने गांव और विद्यालय की गहराई से जानकारी लेने का अवसर दिया। मैंने न सिर्फ अपने स्कूल का गौरवपूर्ण इतिहास जाना, बल्कि अपने बुजुर्गों की मेहनत और गांव की समृद्ध परंपराओं से भी परिचित हुआ।

मुझे गर्व है कि मैं भैंसामुड़ा जैसे संस्कृति-समृद्ध गांव में पढ़ता हूं। मैं चाहता हूं कि हमारी अगली पीढ़ी भी अपनी जड़ों को पहचाने और उन्हें संजोए।

📎 (अगर चाहें तो छात्र यहाँ चित्र भी जोड़ सकते हैं)

  • विद्यालय की तस्वीर
  • गड़ई मेला या करमा नृत्य की तस्वीर
  • बुजुर्गों से बातचीत की फोटो
  • गांव का प्राकृतिक दृश्य
WhatsApp WhatsApp Group
Join Now
Telegram Telegram Group
Join Now

"मोर स्कूल मोर इतिहास" सिर्फ एक लेखन अभ्यास नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है जो बच्चों को उनकी विरासत से जोड़ता है। यह कार्य विद्यालयों के लिए एक स्वर्णिम अवसर है जहाँ वे बच्चों के माध्यम से अपने अतीत को सहेज सकते हैं।

आइए हम सब मिलकर इस अभियान को सफल बनाएं और स्वतंत्रता दिवस 2025 को एक नई चेतना और ऊर्जा के साथ मनाएं।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ