विद्यालय केवल एक भवन या पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं है—यह समाज का वह केंद्र है जहाँ बच्चों का भविष्य गढ़ा जाता है। इस प्रक्रिया में न केवल शिक्षक, बल्कि अभिभावक, समुदाय और प्रशासन की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी सामूहिक सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए शाला प्रबंधन समिति (School Management Committee – SMC) का गठन किया गया है।
RTE अधिनियम 2009 की धारा-21 के अनुसार, प्रत्येक सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में SMC का गठन अनिवार्य है। यह समिति विद्यालय प्रबंधन में पारदर्शिता, जवाबदेही और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देती है।
SMC की परिभाषा
शाला प्रबंधन समिति एक ऐसी संस्था है जिसमें अभिभावक, शिक्षक, स्थानीय जनप्रतिनिधि और अन्य समुदाय के सदस्य शामिल होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य विद्यालय की सभी शैक्षिक, वित्तीय और विकास संबंधी गतिविधियों की निगरानी और प्रबंधन करना है।
SMC के उद्देश्य
SMC के उद्देश्य बहुआयामी और शिक्षा की गुणवत्ता से सीधे जुड़े होते हैं:
- विद्यालय की निगरानी – शिक्षण, उपस्थिति, मिड-डे मील, स्वास्थ्य परीक्षण और अन्य कार्यक्रमों पर नजर रखना।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना – बच्चों के सीखने के स्तर और परिणामों में सुधार लाना।
- स्कूल विकास योजना (School Development Plan) तैयार करना – अगले तीन वर्षों की योजना बनाना और उसे लागू करना।
- वित्तीय प्रबंधन – प्राप्त अनुदानों का सही और पारदर्शी उपयोग करना।
- सामुदायिक सहभागिता – अभिभावकों, स्थानीय निकाय और समुदाय के बीच मजबूत संबंध स्थापित करना।
- ड्रॉप-आउट रोकना – नामांकन और उपस्थिति बढ़ाना।
- सुविधाओं का विकास – भवन, फर्नीचर, शौचालय, पुस्तकालय, खेल सामग्री आदि का प्रबंधन।
- नवाचार को बढ़ावा देना – स्थानीय स्तर पर शिक्षा सुधार के नए प्रयोग लागू करना।
SMC की संरचना
SMC आमतौर पर 16 सदस्यों की होती है (संख्या राज्यवार भिन्न हो सकती है)। इसमें निम्न सदस्य शामिल होते हैं:
- अभिभावक/संरक्षक सदस्य – कुल सदस्यों का कम से कम 75% अभिभावक होते हैं।
- शिक्षक सदस्य – विद्यालय के 1 या 2 शिक्षक।
- स्थानीय जनप्रतिनिधि – सरपंच, पार्षद या पंचायत समिति सदस्य।
- अन्य सदस्य – शिक्षा में रुचि रखने वाले समाजसेवी, महिला समूह प्रतिनिधि आदि।
महत्वपूर्ण प्रावधान:
- कम से कम 50% सदस्य महिलाएँ होनी चाहिए।
- अनुसूचित जाति/जनजाति और दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य है।
SMC के पदाधिकारी
- अध्यक्ष – अभिभावक सदस्यों में से निर्वाचित।
- उपाध्यक्ष – अभिभावक सदस्यों में से ही चुना जाता है।
- सदस्य सचिव – विद्यालय के प्रधानाध्यापक (पदेन)।
- कोषाध्यक्ष – समिति द्वारा नामित, आमतौर पर अभिभावक सदस्य।
- अन्य सदस्य – कार्यकारिणी के बाकी सदस्य।
गठन और पुनर्गठन प्रक्रिया
- गठन का समय – नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में।
- बैठक बुलाना – प्रधानाध्यापक साधारण सभा बुलाते हैं।
- सदस्यों का चयन – अभिभावकों और अन्य सदस्यों का चुनाव या सहमति से चयन।
- पदाधिकारियों का चुनाव – अध्यक्ष, उपाध्यक्ष आदि का चयन।
- अधिसूचना जारी – चयन की जानकारी ब्लॉक/जिला शिक्षा अधिकारी को भेजी जाती है।
कार्यकाल – आमतौर पर 2 वर्ष, उसके बाद पुनर्गठन।
SMC की बैठकें
साधारण सभा
- वर्ष में कम से कम 3 बार बैठक।
- कोरम: कुल सदस्यों का कम से कम 25%।
- सूचना: 4 दिन पूर्व लिखित सूचना (आपात स्थिति में 2 दिन)।
कार्यकारिणी समिति
- हर महीने बैठक (अक्सर अमावस्या के दिन)।
- कोरम: कुल सदस्यों का कम से कम 1/3।
- सभी निर्णय लिखित कार्यवाही पुस्तिका में दर्ज।
SMC के कार्य और जिम्मेदारियाँ
- विद्यालय विकास योजना बनाना और अनुमोदित करना।
- शिक्षकों की उपस्थिति और समयपालन की निगरानी।
- मिड-डे मील योजना का संचालन देखना।
- बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाना।
- स्कूल में स्वच्छता, स्वास्थ्य और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- सरकारी योजनाओं और अनुदानों का उपयोग करना।
- शिकायतों का निवारण करना।
- शैक्षिक नवाचार लागू करना।
- विद्यालय और समुदाय के बीच बेहतर संवाद बनाए रखना।
- वार्षिक रिपोर्ट तैयार कर शिक्षा विभाग को भेजना।
SMC के अधिकार
- अनुदान राशि के उपयोग पर निर्णय लेना।
- भवन निर्माण या मरम्मत कार्य की स्वीकृति देना।
- अध्यापकों के स्थानांतरण/अनुशासन संबंधी मामलों में सुझाव देना।
- शैक्षिक सामग्री और उपकरण खरीदने की स्वीकृति।
- विद्यालय में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए प्रशासन से संवाद।
SMC के लाभ
- पारदर्शी प्रबंधन – समुदाय की भागीदारी से भ्रष्टाचार में कमी।
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा – स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार सुधार।
- संसाधनों का बेहतर उपयोग – अनुदान और स्थानीय योगदान का सही प्रयोग।
- सामुदायिक स्वामित्व – लोग विद्यालय को अपना मानकर योगदान देते हैं।
- ड्रॉप-आउट में कमी – अभिभावकों की सीधी भागीदारी से बच्चों की उपस्थिति बढ़ती है।
चुनौतियाँ
- कई जगह अभिभावकों की बैठक में कम भागीदारी।
- वित्तीय पारदर्शिता बनाए रखने में कठिनाई।
- राजनीतिक हस्तक्षेप।
- सदस्यों में प्रशिक्षण और जागरूकता की कमी।
- निर्णयों के कार्यान्वयन में देरी।
सुधार और भविष्य की दिशा
- सदस्यों का नियमित प्रशिक्षण – RTE, वित्तीय प्रबंधन, बाल अधिकार आदि पर।
- डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग – ऑनलाइन बैठक, रजिस्टर, अनुदान ट्रैकिंग।
- अच्छे कार्य का प्रोत्साहन – बेहतर कार्य करने वाली SMC को पुरस्कार।
- स्थानीय नवाचार – शिक्षा में नए प्रयोगों को बढ़ावा।
अतिरिक्त बिंदु जो ज़रूरी हैं
1.कानूनी आधार
- SMC का गठन Right to Education Act (RTE), 2009 के तहत अनिवार्य है।
- हर प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में SMC होनी चाहिए।
2.अवधि (Tenure)
- SMC का कार्यकाल सामान्यतः 2 वर्ष होता है।
- अवधि पूरी होने पर नई समिति का गठन किया जाता है।
3.अध्यक्ष व उपाध्यक्ष
- अध्यक्ष हमेशा अभिभावक सदस्य में से चुना जाता है।
- उपाध्यक्ष शिक्षक या समुदाय सदस्य हो सकता है।
4.उप-समितियाँ (Sub-Committees)
- वित्त समिति
- निर्माण/मरम्मत समिति
- मिड-डे मील समिति
- बाल सुरक्षा समिति
5.वार्षिक विद्यालय विकास योजना (School Development Plan)
- SMC हर साल SDP तैयार करती है जिसमें वित्तीय आवश्यकताएं, इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार, स्टाफ की ज़रूरतें और शैक्षणिक लक्ष्य होते हैं।
6.फंड का उपयोग
7.शिक्षा की गुणवत्ता पर नज़र
- छात्र-शिक्षक अनुपात
- परीक्षा परिणाम
- सीखने के स्तर का मूल्यांकन
8.सामाजिक समावेशन
- दिव्यांग बच्चों, गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों के प्रवेश व सहायता को प्राथमिकता।
9.बैठक की प्रक्रिया
- बैठक का नोटिस कम से कम 7 दिन पहले देना।
- कार्यसूची (Agenda) पहले से तय करना।
- बैठक के बाद कार्यवाही पुस्तिका में हस्ताक्षर करवाना।
10.पारदर्शिता व जवाबदेही
- खर्च का विवरण नोटिस बोर्ड पर लगाना।
- अभिभावकों को प्रगति रिपोर्ट देना।
शाला प्रबंधन समिति केवल एक औपचारिक संस्था नहीं, बल्कि विद्यालय की रीढ़ है। जब अभिभावक, शिक्षक और समुदाय एक साथ आकर विद्यालय के विकास में सहयोग करते हैं, तब शिक्षा की गुणवत्ता स्वतः बढ़ जाती है।
इसलिए, SMC का गठन, उसका सक्रिय संचालन और पारदर्शी कार्यप्रणाली ही एक सशक्त, शिक्षित और जागरूक समाज की नींव रख सकती है।
शाला प्रबंधन समिति (SMC) से जुड़े अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. शाला प्रबंधन समिति (SMC) क्या है?
शाला प्रबंधन समिति एक कानूनी संस्था है, जिसमें अभिभावक, शिक्षक, स्थानीय जनप्रतिनिधि और समाजसेवी शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य विद्यालय के संचालन, विकास और शिक्षा की गुणवत्ता की निगरानी करना है।
2. SMC का गठन कब और कैसे होता है?
RTE अधिनियम 2009 की धारा-21 के अनुसार, प्रत्येक सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में SMC का गठन किया जाता है। सदस्य चुनाव या सहमति से चुने जाते हैं, और पदाधिकारियों का चयन बैठक में होता है।
3. SMC में कितने सदस्य होते हैं?
आमतौर पर SMC में 16 सदस्य होते हैं (संख्या राज्य के अनुसार बदल सकती है), जिसमें कम से कम 75% अभिभावक सदस्य और 50% महिलाएँ होना अनिवार्य है।
4. SMC के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
- विद्यालय की शैक्षिक और प्रशासनिक गतिविधियों की निगरानी
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना
- स्कूल विकास योजना (SDP) बनाना
- वित्तीय संसाधनों का पारदर्शी उपयोग
- समुदाय और विद्यालय के बीच संवाद बढ़ाना
5. SMC के पदाधिकारी कौन-कौन होते हैं?
- अध्यक्ष – अभिभावक सदस्य
- उपाध्यक्ष – अभिभावक या समुदाय सदस्य
- सदस्य सचिव – प्रधानाध्यापक
- कोषाध्यक्ष – अभिभावक सदस्य
6. SMC की बैठक कितनी बार होती है?
- साधारण सभा – साल में कम से कम 3 बार
- कार्यकारिणी बैठक – हर महीने (अक्सर अमावस्या के दिन)
7. SMC के अधिकार क्या हैं?
- अनुदान राशि के उपयोग पर निर्णय
- भवन निर्माण या मरम्मत की स्वीकृति
- शिक्षकों से संबंधित सुझाव देना
- शैक्षिक सामग्री की खरीद स्वीकृत करना
8. SMC का कार्यकाल कितना होता है?
SMC का कार्यकाल सामान्यतः 2 वर्ष होता है, जिसके बाद नई समिति का गठन किया जाता है।
9. SMC के फायदे क्या हैं?
- विद्यालय प्रबंधन में पारदर्शिता
- शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार
- संसाधनों का बेहतर उपयोग
- बच्चों की उपस्थिति और नामांकन में वृद्धि
10. SMC को प्रभावी बनाने के लिए क्या सुधार आवश्यक हैं?
- सदस्यों का नियमित प्रशिक्षण
- डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग
- बेहतर प्रदर्शन पर प्रोत्साहन
- स्थानीय स्तर पर नवाचार को बढ़ावा
💬 अपना अनुभव या राय बताएं
क्या आपके विद्यालय में SMC सक्रिय है? क्या इससे शिक्षा की गुणवत्ता में फर्क पड़ा है? अपने विचार और अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें।
.jpg)
.png)

0 टिप्पणियाँ